1- जिस प्रकार रथ में लगा चक्र अकेला रथ नहीं चला सकता उसी प्रकार
सार्वजानिक कार्य अकेला एक व्यक्ति नहीं कर सकता |
भावार्थ-
मंत्रिपरिषद-विहीन या एकतंत्रीय राज्य को राजा नहीं चला सकता |सार्वजानिक कार्य
में अकेले मनुष्य की कोई प्रतियोगिता नहीं होती है |अकेला राजा केवल चाटुकारों के
बल पर शासन करता है अर्थार्त उसके साथ योग्य मंत्रिपरिषद नहीं है ,तो एसी
शासन-व्यवस्था जनता द्धारा उखाड़ कर फेंक दि जाती है |राजा को मंत्रिपरिषदरूपी दो
चक्रों की अनिवार्य आवश्यकता होती है |राज्य राजा की पारिवारिक सम्पत्ति नहीं होती
है |वह तो जनता की धरोहर होती है |
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