Friday 11 October 2013

आचार्य चाणक्य जी ने सार्वजानिक कार्य अकेले न होने के बारे में क्या कहा.

1-  जिस प्रकार रथ में लगा चक्र अकेला रथ नहीं चला सकता उसी प्रकार सार्वजानिक कार्य अकेला एक व्यक्ति नहीं कर सकता |


    भावार्थ- मंत्रिपरिषद-विहीन या एकतंत्रीय राज्य को राजा नहीं चला सकता |सार्वजानिक कार्य में अकेले मनुष्य की कोई प्रतियोगिता नहीं होती है |अकेला राजा केवल चाटुकारों के बल पर शासन करता है अर्थार्त उसके साथ योग्य मंत्रिपरिषद नहीं है ,तो एसी शासन-व्यवस्था जनता द्धारा उखाड़ कर फेंक दि जाती है |राजा को मंत्रिपरिषदरूपी दो चक्रों की अनिवार्य आवश्यकता होती है |राज्य राजा की पारिवारिक सम्पत्ति नहीं होती है |वह तो जनता की धरोहर होती है |

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